Musafir Aneesh
Friday, January 4, 2019
Saturday, November 25, 2017
कविता ~ रेल की पटरियां
1
रेल की पटरियों पर
रेलगाड़ियां गुजरती हैं
रह रह कर
गरीबों पर दुख हो जैसे
वें सिर्फ कांप कर रह
जाती हैं
ढोती हैं बड़े बड़े बोझ
सहती है वर्षा- धूप
पड़ी रहती हैं एक जगह
कीलों से बंधी वर्षों- बरस
वे जाने देती है रेलगाड़ियों को
इसलिये नहीं कि वे बंधी है
नही कर सकती है प्रतिरोध
वे जाने देती है
ताकि मिल सके
हम और तुम
2
रेल की पटरियां देखो
तो चली जाती क्षितिज की ओर
नदियों खेतों पहाड़ों को करते
पार
जैसे वे आगे चलकर
पा लेंगी एक दूसरे को
एक दूसरे में हो जायेगी
समाहित
शायद उन्हें खबर नही कि
उनकी भी नियति है
हम जैसी
3
कहते हैं भारत में है
दुनियां का सबसे बड़ा
रेल पटरियों का जाल
जो जुड़ी हैं एक दूसरे से
और मिलाती है लोगो को
पहुंचाती है जरूरी गैर जरूरी
सारे सामान
चलो पता करते है
कितनी सच्चाई है इन में
तुम वहां रखना अपनी
धड़कनों को – एक पटरी पर
मैं लगाऊंगा यहां अपना कान
कविता~ ऑमलेट
आमलेट
बचपन से सुनता आया हूँ,
धरती है,
अंडे के जैसी गोल,
आज पता चला,
हमारे रोज का हासिल भी,
अंडा है,
उठना, ब्रश करना,
नहाना, आफिस जाना,
थकना, खाना और सो जाना,
हर दिन वही क्रम दोहराना,
जैसे सिसाइफस का,
पत्थर लेकर,
ऊपर जाना- नीचे आना,
असल मुश्किल तो ये है कि,
अभी आया नही मुझे,
आमलेट बनाना.......
Friday, December 30, 2016
बगावत की वजह
अब चूँकि सिर्फ गुल्ली-डंडा का खेल ही इकलौती-सी चीज थी जिसकी मनाही नहीं थी, तो सारे लोग कस्बे के पीछे के घास के मैदान पर जुटते और गुल्ली-डंडा खेलते हुए अपने दिन बिताते।
और चूँकि चीजों को प्रतिबंधित करने वाले कानून हमेशा बेहतर तर्कों के साथ और एक-एक कर बनाए गए थे, किसी के पास न तो शिकायत करने की कोई वजह थी और न ही उन कानूनों का आदी होने में उन्हें कोई मुश्किल आई।
सालों बीत गए। एक दिन हुक्मरानों को समझ में आया कि हर चीज की मनाही की कोई तुक नहीं है तो उन्होंने सारे लोगों तक यह बात पहुँचाने के लिए हरकारे दौड़ाए कि वे जो चाहे कर सकते हैं।
हरकारे उन जगहों पर गए जहाँ जुटने के लोग आदी थे।
'सुनो, सुनो' उन्होंने ऐलान किया, 'अब किसी चीज की मनाही नहीं है।'
जनता गुल्ली-डंडा खेलती रही।
'समझ में आया?' हरकारों ने जोर देकर कहा, 'तुम जो चाहो वो करने के लिए आजाद हो।'
'अच्छी बात है,' लोगों ने जवाब दिया। 'हम गुल्ली-डंडा खेल तो रहे हैं।'
हरकारों ने जल्दी-जल्दी उन तमाम अनोखे और फायदेमंद धंधों की बाबत उन्हें याद दिलाया जिनमें कभी वे सब मसरूफ हुआ करते थे और अब, वे एक बार फिर से उन्हें कर सकते थे। मगर लोगों ने उनकी बात नहीं सुनी और वे बिना दम लिए, प्रहार दर प्रहार गुल्ली-डंडा खेलने में लगे रहे।
अपनी कोशिशों को जाया होते देख हरकारे यह बात हुक्मरानों को बताने के लिए गए।
'सीधा-सा उपाय है,' हुक्मरानों ने कहा। 'गुल्ली-डंडा के खेल की ही मनाही कर देते हैं।'
यही वह बात थी जिस पर लोगों ने बगावत कर दी और हुक्मरानों को मार डाला और बिना वक्त बर्बाद किए वे फिर से गुल्ली-डंडा खेलने लगे।
Saturday, December 17, 2016
Monday, October 24, 2016
जरई से धान
मैं आ रहा हूं
तेरे पास
गाँव छोड़कर
नये अनुभवों के साथ
जैसे जरई जा बैठती है
दुसरे खेत में
इस आशा के साथ
कि एक दिन बन जाएगी पौध
लगेंगी जिस पर बालियां
जिन्हे देख खिल उठेंगे किसान।
जरई से धान होना
मैं जानता हूं
विकास की एक प्रक्रिया है
झेलना पड़ता है जिसमें वर्षा और धूप
ऐसे अंदेशे भी कि
मिट्टी कैसी होगी
मिल पाएगा उसे किसान
दे पाएगा खाद पानी
या सूखे की बलि चढ़ जाना होगा !
हाँ, यह भी पता कर लिया है मैंने
कि आरामगाह छोड़े बिना
संभव नहीं है विकास।
Tuesday, April 19, 2016
tha wo Raaja
Jaisa b hai jis haal m b h zinda hai
Uski yaado ka dil me pulinda hai
Koshis ki usne bhi usko bhulne ki
Par kaid m uski dil ka wo parinda
Ek yaad jo har pal uski dastak deti hai
Karke band darwaja wo sharminda hai
Chahta hai wo b pinjara tod ke udd jana
Udega kaise wo par katra parinda
Chaha tha usne b chand sitare tod kar lana
Par wo ab halat ka mara banda hai
Akhir kya hua aisa ki wo tut gya
Khud hi khud se q wo itna ruth gya
Ye baat dar asal thodi bhut purani thi
Tha wo raja aur uski ek rani hai....